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Monday, November 21, 2011

कुलबुलाहट

कुछ मन में कुलबुलाहट सी है चार साल की डिग्री पूरी होने वाली है, कुछ-कुछ बड़ा सा भी महसूस कर रहा हूँ
सब कुछ इतनी जल्दी बदला की पता ही नहीं चला, कब ये "अमित" गाँधी और ये "गाँधी" Amy में बदल गया
और Amy  न जाने कब स्वघोषित "आवर्त" में परिवर्तित हो गया !!
न जाने अभी कितने बदलाव होने बाकी है, कभी कभी कुछ लोग हमे रोज मिलते है उनमे से कुछ को हम दोस्त भी कहते है और यही वो लोग है जो सबसे बड़ा बदलाव लाते है, आज जब कुछ लिखने का मन न भी हो तो भी लगता है कुछ कमी सी है, आज भी याद है मुझे मेरा वो सहमा हुआ सा रूप जब पहली बार देहरादून शहर में कदम रखा दोस्त बनाये डरते-डरते, क्यूँकी  घरवालो का शुरु से ही जोर था दोस्ती अच्छे बच्चो से करना (अब भला मुझे पता होता क्या अच्छा क्या बुरा तो शायद मुझे दोस्त बनाने की जरुरत नहीं पड़ती )
पर देर से ही सही हर कोई गिरफ्तार होता है दोस्ती की कैद में फिर ये मायने नहीं रखता की क्या सही है क्या गलत बस एक निश्चल और समर्पित रिश्ते होते है जो कभी कभी खून के रिश्तो से भी बड़े लगते है,
पर इसे समय की क्रूरता कहे की बालमन का भोलापन जैसे जैसे वक़्त गुजरता है सब फिर से धुन्दला सा दूर दूर नजर आता है इसे समय की मार कहें भावनाओ से ग्रसित दिमाग का रासायनिक-लोच्चा 
एक पल के बाद सब फिर से अजनबी सा व्यवहार करने लगते है विश्वास कम होने लगता है और माता-पिता की कही गयी बातें ही सही लगती है जो की हम कभी मानने को तैयार नहीं होते थे
पर मेरे नजरिये से रिश्तो में विश्वास कम होता है दूरियां भी आती है पर ये सब सिर्फ इनकी कीमत में इजाफा करते है और अगर नुक्सान होता है तो सिर्फ आडम्बरो का, दिखावो का जिस तरह से मंथन से सिर्फ मक्खन ही शुद्ध  रूप से मिलता है और छाछ अलग हो जाती है , इसी तरीके से रिश्तो की उहपहोह में वही रिश्ते टिक पाते है जो रिश्ते कहलाते है, शुद्ध और निर्मल (वक़्त की मार एवं भावनाओ से ग्रसित दिमाग का रासायनिक-लोच्चे के कारण)
अगर कभी भी मौका मिले रिश्तो को निभाने का
एक पल भी तुम न डिगना
समय भावुक हो कर खेलता है तुमसे
हर पल तुम जीतना
हार गये तुम तो हारे नहीं कहलाओगे 
लेकिन हार मानी जिस पल तुमने
बस उस पल तुम हार जाओगे ....................:)
यही है आज अमितविचार सहमति की जरूरत नहीं
धन्यवाद !!!



2 comments:

  1. mai nahi janta mujhe is par kaisa reaction dena chaiye..bas tum kafi kuch keh ke kuch kuch ankaha chod dete ho..aur wahi muhe samjh bhi aata hai..aur yaad bhi .....ek baat aur ye page bahut hi acha hai..har baar ki tarha..hamesha :-)

    jai shri krishna;-)

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  2. aapse hi seekha hai......bus utarta nahi panno pe jaise socha jaata hai..:)

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