SEARCH ME

Tuesday, November 29, 2011

नानी

दे ताली 
दे ताली
हैप्पी दिवाली (सर के ऊपर से हाथ घुमाते हुए )
..........
२-३ बार यही दोहराते हुए २ छोटे से बच्चे मेरे सामने से निकल गये , अब ऐसे बिन मतलब के बात सिर्फ मासूम निर्दोष बच्चे ही कर सकते है!
मैं मामा जी की दूकान में बैठा उनको देख कर अपने बचपन में गोते लगा रहा था तभी नानी जी और मेरी माता जी भी उन बच्चो की लय-बद्ध  पंक्तियो  पे  मुस्कुराने लगी
और अपनी आदत से मजबूर मैं नानी जी से पूछने लगा वही सारी पुरानी कहानियाँ जो वो मुझे बचपन में सुनाया करती थी
(मूल रूप से गढ़वाली में )
राजा की तीन बीवियों वाली कहानी
लिंडर्य छोरा और कण बुढली की कहानी
मसाण और एक लड़की की कहानी
और न जाने कौन-कौन सी................
ये सारी कथाये न कहीं किन्ही किताबो में लिखी गयी है न ही कहीं किसी ने इन्हें सुना है
ये तो बस एक नानी और उसके नाती के बीच की कुछ बातें है जिन्हें वो और कही से नहीं सीख सकता
एक वक़्त था जब सब कहा करते थे की मेरी नानी/दादी   ने मुझे ये कहानी सुने   है और फिर  उन कहानियो  को  आपस  में सुनते  थे
आज  शायद  ही कोई  बच्चा   अपनी नानी दादी के साथ  बैठ  कर दो  घडी  वातावरण  को महसूस  कर उनकी  बातें ध्यान  से सुनता  होगा
जब नानी से मैंने  ये कहा की नानी अब तो कोई बचा कहानी सुनता ही नहीं है
तो नानी जी कहने  लगी
"अब ता  दिन  भर  तुम  वे  कंप्यूटर  पर  लाग्यां  रंदा कख  बाटिन  सुणोंण  मिन  तुमते  कथा  
पुराणु  टैम कुछ औरे  छो श्याम  बक्ह्त  सभी  बैठी ते  बुल्दा  छा   की कथा  लगा आपस  मा 
अजकाल  ता साथ बैठ्नो  कु  भी टेम  नि  च  "


सच   कहू  तो नानी जी ने जो कुछ भी कहा शत प्रतिशत खरा कहा
आज हम  बस 17 इंच  की screen पे अपनी उंगलियों  को दुखा   कर काले-पीले  अक्षर  भेजते  रहते  है
भावनाओ  के नाम  पर कुछ नहीं  "SyMbOLs" है उन्ही   से गुजारा   चलाना   पड़ता   है
बंद  कमरों  और ऑफिस में सिमट  के रह  गया  है इंसान 
 प्रकृति  को महसूस करना  है और जिंदगी  को जीना  है तो इसके  कुछ इन  अनछुए  पहलुओ  को छूकर  देखना 
नानी जी की बातें सुनकर  मुझे अपना  हसीं बचपन याद  आता   है मुझे गर्व  है की मेरे माता-पिता   हर  साल  मुझे गाँव  नानी और दादी-दादा  के साथ कुछ माह बिताने ले जाते थे!  
और मैं गर्व और ख़ुशी से कह   सकता हूँ  की मैंने अपनी नानी जी से कहानियाँ सुनी  है
जो की आजकल  मिलना  बहुत  दुर्लभ  है
ऊपर सब लिखने  का  मेरा  एक ही मकसद था की अगर  कभी  कहीं कोई बच्चा आपसे  बात करना चाहे  या  आपको  कभी मौका  मिले  बचपन को जीने  का तो उसे  गवाए  नहीं
क्यूंकि  बचपन अब बचपन नहीं रहा बाकी  आप  सब तो सब जानते  ही है !!
ये थे आज के अमितविचार  जिनसे  मुझे आनंद  की प्राप्ति  हुई 
धन्यवाद  नानी जी मेरे बचपन को बचपन बनाने  के लिए ................:) 

         

Monday, November 21, 2011

कुलबुलाहट

कुछ मन में कुलबुलाहट सी है चार साल की डिग्री पूरी होने वाली है, कुछ-कुछ बड़ा सा भी महसूस कर रहा हूँ
सब कुछ इतनी जल्दी बदला की पता ही नहीं चला, कब ये "अमित" गाँधी और ये "गाँधी" Amy में बदल गया
और Amy  न जाने कब स्वघोषित "आवर्त" में परिवर्तित हो गया !!
न जाने अभी कितने बदलाव होने बाकी है, कभी कभी कुछ लोग हमे रोज मिलते है उनमे से कुछ को हम दोस्त भी कहते है और यही वो लोग है जो सबसे बड़ा बदलाव लाते है, आज जब कुछ लिखने का मन न भी हो तो भी लगता है कुछ कमी सी है, आज भी याद है मुझे मेरा वो सहमा हुआ सा रूप जब पहली बार देहरादून शहर में कदम रखा दोस्त बनाये डरते-डरते, क्यूँकी  घरवालो का शुरु से ही जोर था दोस्ती अच्छे बच्चो से करना (अब भला मुझे पता होता क्या अच्छा क्या बुरा तो शायद मुझे दोस्त बनाने की जरुरत नहीं पड़ती )
पर देर से ही सही हर कोई गिरफ्तार होता है दोस्ती की कैद में फिर ये मायने नहीं रखता की क्या सही है क्या गलत बस एक निश्चल और समर्पित रिश्ते होते है जो कभी कभी खून के रिश्तो से भी बड़े लगते है,
पर इसे समय की क्रूरता कहे की बालमन का भोलापन जैसे जैसे वक़्त गुजरता है सब फिर से धुन्दला सा दूर दूर नजर आता है इसे समय की मार कहें भावनाओ से ग्रसित दिमाग का रासायनिक-लोच्चा 
एक पल के बाद सब फिर से अजनबी सा व्यवहार करने लगते है विश्वास कम होने लगता है और माता-पिता की कही गयी बातें ही सही लगती है जो की हम कभी मानने को तैयार नहीं होते थे
पर मेरे नजरिये से रिश्तो में विश्वास कम होता है दूरियां भी आती है पर ये सब सिर्फ इनकी कीमत में इजाफा करते है और अगर नुक्सान होता है तो सिर्फ आडम्बरो का, दिखावो का जिस तरह से मंथन से सिर्फ मक्खन ही शुद्ध  रूप से मिलता है और छाछ अलग हो जाती है , इसी तरीके से रिश्तो की उहपहोह में वही रिश्ते टिक पाते है जो रिश्ते कहलाते है, शुद्ध और निर्मल (वक़्त की मार एवं भावनाओ से ग्रसित दिमाग का रासायनिक-लोच्चे के कारण)
अगर कभी भी मौका मिले रिश्तो को निभाने का
एक पल भी तुम न डिगना
समय भावुक हो कर खेलता है तुमसे
हर पल तुम जीतना
हार गये तुम तो हारे नहीं कहलाओगे 
लेकिन हार मानी जिस पल तुमने
बस उस पल तुम हार जाओगे ....................:)
यही है आज अमितविचार सहमति की जरूरत नहीं
धन्यवाद !!!