आज की सुबह ही कुछ खास थी ,क्यूंकि आमतौर पर मेरा रविवार ९ बजे से पहले नहीं खुलता है ,परन्तु आज मैं
६:१७ पर ही उठ गया | रोज की तरह ऊँघने की बजाय मैंने अपने कॉलेज की ड्रेस धोयी , जो की मैं माँ के लाख कहने पर भी अमूमन नहीं धोता हूँ ..................
अपनी व्यक्तिगत बातों से बाहर आकर मैं सीधे आज की बात पर आता हूँ
आज जब सुबह १० बजे मैं और अपूर्व घर से निकले, तो मुझे पता नहीं था की मैं आज ऐसे शख्सियत से मिलने वाला हूँ जो मुझे आज लिखने और कुछ बेहतर सोचने को प्रेरित करेंगी|
हम आज अपने उत्तराखंड की ऐसी शख्सियत से मिले जिन्हें हम सिर्फ अपने दोस्त की माता जी के रूप में जानते थे|
पर जब आज उनसे मिले तो पता चला की 'गरबा' नृत्य का मूल हमारे गढ़वाल की ही देन है |उनकी पुस्तक , यहाँ पर ग्रन्थ कहना ज्यादा उचित होगा (क्योकि उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी गढ़वाली साहित्य , कला और लोकगीतों के शोध में लगाई है ) को देखकर मैं हतप्रभ था |
हमारे उत्तराखंड में और खासकर गढ़वाल पर शायद ही किसी ने इतना शोध किया हो | उन्होंने अपने कुछ अनुभव हमारे साथ बाटे और अपना शोध कार्य भी दिखाया | एक अनुभव ये भी था की अमेरिका का एक व्यक्ति स्टीफन जो विभिन्न संस्कृतियो पर पर शोध कार्य कर रहा था इनसे मिलकर अति प्रसन्न हुआ और इनके द्वारा दिए गये सुझावों और तथ्यों से अपना शोध पूरा किया और इनका बहुत धन्यवाद किया |
उसमे गढ़वाल के साहित्य .कला और संगीत का इतना महीन और पुराना ज्ञान संग्रह था जो शायद ही कही उपलब्ध हो| सभी गढ़वाली वाद्य-यंत्रो का हमारे पारंपरिक वाद्य-यंत्रो से तुलनात्मक अध्ययन ,पुराने लोकगीतों की स्वर अभिव्यंजना , उन्हें देखकर प्रतीत हो रहा था कि पुस्तक के हर एक पृष्ठ से एक नयी पुस्तक निकल आएगी |
हमारी संस्कृति ,विचार और हमारे पूर्वजो कि धरोहर को गाँव गाँव जाकर उन्होंने संजोया है
मैं उनका नाम उजागर नहीं करूँगा क्योकि मेरा ये लेख उनके ज्ञान के महासागर के आगे एक बूँद भी नहीं है |
अगर कोई अपने गढ़वाल की संस्कृति को एक सच्चे नजरिये से देखना चाहता है तो इनसे मिलना|
गढ़वाली सभ्यता के विनम्र "Encyclopedia " आदर सहित ये लेख आपके लिए ||||
जड़ो की ओर मोड़ने की आपकी पहल में हम आपके साथ है ||||||